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यु॒ञ्जन्ति॑ ब्र॒ध्नम॑रु॒षं चर॑न्तं॒ परि॑ त॒स्थुषः॑। रोच॑न्ते रोच॒ना दि॒वि ॥५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यु॒ञ्जन्ति॑। ब्र॒ध्नम्। अ॒रु॒षम्। चर॑न्तरम्। परि॑। त॒स्थुषः॑। रोच॑न्ते। रो॒च॒नाः। दि॒वि ॥५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:23» मन्त्र:5


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर ईश्वर कैसा है, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो पुरुष (परि) सब ओर से (तस्थुषः) स्थावर जीवों को (चरन्तम्) प्राप्त होते हुए बिजुली के समान वर्त्तमान (अरुषम्) प्राणियों के मर्मस्थल जिनमें पीड़ा होने से प्राण का वियोग शीघ्र हो जाता है, उन स्थानों की रक्षा करने के लिये स्थिर होते हुए (ब्रध्नम्) सबसे बड़े सर्वोपरि विराजमान परमात्मा को अपने आत्मा के साथ (युञ्जन्ति) युक्त करते हैं, वे (दिवि) सूर्य में (रोचनाः) किरणों के समान (रोचन्ते) परमात्मा में प्रकाशमान होते हैं ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे प्रत्येक ब्रह्माण्ड में सूर्य प्रकाशमान है, वैसे सर्व जगत् में परमात्मा प्रकाशमान है। जो योगाभ्यास से उस अन्तर्यामी परमेश्वर को अपने आत्मा से युक्त करते हैं, वे सब ओर से प्रकाश को प्राप्त होते हैं ॥५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरीश्वरः कीदृशोऽस्तीत्याह ॥

अन्वय:

(युञ्जन्ति) युक्तं कुर्वन्ति (ब्रध्नम्) महान्तम् (अरुषम्) अरुःषु मर्मसु सीदन्तम् (चरन्तम्) प्राप्नुवन्तम् (परि) सर्वतः (तस्थुषः) स्थावरान् (रोचन्ते) प्रकाशन्ते (रोचनाः) दीप्तयः (दिवि) ॥५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये परितस्थुषश्चरन्तं विद्युतमिव वर्त्तमानमरुषं ब्रध्नम्परमात्मानमात्मना सह युञ्जन्ति, ते दिवि सूर्ये रोचनाः किरणा इव रोचन्ते ॥५ ॥
भावार्थभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा प्रतिब्रह्माण्डे सूर्यः प्रकाशते तथा सर्वस्मिन् जगति परमात्मा प्रकाशते। ये योगाभ्यासेनाऽन्तर्यामिणं परमात्मानं स्वमात्मना युञ्जते ते सर्वतः प्रकाशिता जायन्ते ॥५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे माणसांनो ! प्रत्येक ब्रह्मांडात जसा सूर्य प्रकाशमान असतो. तसे सर्व जगात परमेश्वर प्रकाशमान असतो. जे योगाभ्यासाने त्या अंतर्यामी परमेश्वराला आपल्या आत्म्यात युक्त करतात तेही सर्वस्वी (ज्ञान) प्रकाशयुक्त बनतात.